भारत के मुख्य न्यायधीश जस्टिस एनवी रमना ने संसद की मौजूदा स्थिति पर गंभीर चिंता जाहिर की है। 75वें स्वतंत्रता दिवस पर जस्टिस रमना ने संसद से बिना उचित बहस के कानून पास किए जाने को खेदजनक स्थिति बताते हुए पहले की स्थिति से तुलना की है और वकीलों को राजनीतिक प्रक्रिया से फिर से जुड़ने का आह्वान किया है
नई दिल्ली, 15 अगस्त: संसद के मानसून सत्र में इसबार जिस कदर हंगामा हुआ है और कुछ सांसदों की वजह से देश के लोकतंत्र को शर्मसार होना पड़ा है, लगता है कि उससे देश के चीफ जस्टिस एनवी रमना भी भीतर से आहत हैं। उन्होंने संसद में कानून बनाते समय गुणवत्ता वाली बहस में आई कमी पर चिंता जाहिर करते हुए बताया है कि इससे सरकार और आम लोगों को भी परेशानी हो रही है। उन्होंने कहा है कि पहले किसी भी कानून को बनाने से पहले संसद में बहुत ही सकारात्मक चर्चा होती थी, जिसका अब पूरी तरह से अभाव नजर आता है। उन्होंने यहां तक कहा है कि ‘आज खेदजनक स्थिति है…’ सीजेआई ने अपनी ये भावनाएं स्वतंत्रता दिवस पर झंडोतोलन समारोह के दौरान जाहिर की हैं।
#WATCH | CJI Ramana says, "If you see debates which used to take place in Houses in those days, they used to be very wise, constructive…Now, sorry state of affairs…There's no clarity in laws. It's creating lot of litigation&loss to govt as well as inconvenience to public…" pic.twitter.com/8Ca80rt8wC
— ANI (@ANI) August 15, 2021
‘संसद में गुणवत्ता वाली बहस का अभाव’
सीजेआई एनवी रमना ने आज कहा है कि ‘ऐसा लगता है कि आज संसद में कानून बनाते समय गुणवत्ता वाली बहस का अभाव होता है। इससे बहुत सारी मुकदमेबाजी होती है और अदालतें गुणवत्तापूर्ण बहस के अभाव में नए कानून के पीछे की मंशा और उद्देश्य को समझ पाने में असमर्थ रहते हैं।’ जस्टिस रमना के मुताबिक ‘कानूनों में बहुत अस्पष्टता’ की वजह से मुकदमेबाजी को बढ़ावा मिला है, जिससे नागरिकों के साथ-साथ अदालतों और दूसरे संबंधित लोगों के लिए भी परेशानियां पैदा हुईं।
संसद में वकीलों की कमी को बताई वजह
चीफ जस्टिस ने साफ शब्दों में कहा कि, ‘कानूनों में कोई स्पष्टता नहीं है। हम नहीं जानते कि कानूनों को किस उद्देश्य से बनाया गया है। इसके चलते ढेर सारी मुकदमेबाजी होती है, सरकार को परेशानी और नुकासन होता है, साथ ही साथ लोगों को भी परेशानी होती है। अगर सदनों में बुद्धिजीवी और वकील जैसे पेशेवर न हों तो यही होता है।’ जस्टिस रमना ने कहा कि आजादी के बाद संसद में बड़ी संख्या में वकील मौजूद होते थे और शायद इसी वजह से गुणवत्तापूर्ण बहस होते थे। उन्होंने कहा है कि ‘वकील समुदाय को फिर से सार्वजनिक जीवन में समर्पित होना चाहिए और संसदीय बहसों में बदलाव लाना चाहिए।’
अब खेदजनक स्थिति है……जस्टिस एनवी रमना
इसके बाद मुख्य न्यायधीश ने जो कुछ भी कहा है, वह सीधे संसद की मौजूदा चिंताजनक स्थिति की ओर इशारा लगता है। उन्होंने कहा है, ‘उन दिनों में सदनों जिस तरह के बहस होते थे, अगर आप उन्हें देखेंगे तो वे बहुत बुद्धिमान, रचनात्मक हुआ करते थे…….अब खेदजनक स्थिति है……कानूनों में कोई स्पष्टता नहीं होती।……’
मानसून सत्र में राज्यसभा में ‘शर्मसार’ हुआ लोकतंत्र!
गौरतलब है कि हाल भी संपन्न हुए संसद के मानसून सत्र में हंगामें के चलते लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाहियों को कई बार स्थगित करना पड़ा। पेगासस और कृषि कानूनों के मुद्दे पर विपक्ष संसद को चलने नहीं देना चाहता था और सरकार की ओर से हंगामें के बीच से ही विधेयकों को पास करा लेने की कोशिशें की गईं। सरकार और विपक्ष में इस तकरार के चलते जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपये पानी की तरह बह गए और कई कानून बिना उचित चर्चा के पास करा लिए गए। इस हालात के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप जारी है। लेकिन, हकीकत ये ही है कि आखिरकार नुकसान देश और देश की जनता का ही हुआ है।