आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने मोदी सरकार को धमकी दी है कि अगर इस बार जातिवार जनगणना नही की गई तो हम लोग जनगणना का बहिष्कार करेंगे।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी मोदी सरकार को नसीहत दी है कि पिछड़ों के आरक्षण के साथ खिलवाड़ बंद कर दें नहीं बहुजन समाज के लोग आबादी बराबर आरक्षण का आंदोलन तेज़ कर देंगे।
डीएमके प्रमुख स्टालिन ने तो कर दिखाया है कि पिछड़ों के हकों में थोड़ी भी कटौती की तो लड़ाई लड़कर हम अपना हक छीन लेंगे, बहुमत की इस सत्ता का घमंड तोड़ देंगे।
एनसीपी, शिवसेना, जेडीएस, टीएमसी और आप ने तो पिछड़ों के हक की बात की ही है, कांग्रेस भी अब पिछड़ों का साथ देती दिख रही है।
मतलब ओबीसी के अधिकारों की बातों से पूरी संसद गूंज रही है, भले ही बहाना मोदी सरकार ने दिया है, संविधान में 127वें संशोधन का बिल पेश किया है मोदी सरकार को लग रहा है उसने पिछड़ों के साथ तुष्टीकरण कर लिया है मगर उसने आगे की अपनी राह को दूभर कर लिया है, ओबीसी समाज के नेताओं ने मोदी सरकार को पूरी तरह से घेर लिया है।
जातिवार जनगणना करवाकर पिछड़ों को उनकी आबादी बराबर आरक्षण दिया जाए या ना दिया जाए, इस पर क्लियर स्टैंड के लिए मजबूर कर दिया है । अब इस मजबूरी में फंसी भाजपा क्या निर्णय लेती है ये देखना दिलचस्प होगा, खुद को पिछड़े का बेटा कह कर वोट मांगने वाले मोदी का अब अगला कदम क्या होगा?
तेजस्वी अखिलेश स्टालिन की नई फौज को अगर नजरअंदाज करने की कोशिश भी की गई तो लालू मुलायम शरद यादव, देवगौड़ा पवार मायावती की पुरानी फौज़ इनका घेराव करने के लिए तैयार बैठी है। सामाजिक न्याय की दशकों की राजनीति और तमाम रणनीतियों के सहारे, ये मंडली इस कमंडल को, मंडल के हथियारों से ध्वस्त करने के लिए तैयार बैठी हैं।
अब इस तैयारी में आपसी तालमेल कितना ज्यादा होगा, ये देखना भी दिलचस्प होगा । मोदी राज में एकतरफा जीत दर्ज कर रही भाजपा के लिए अब एक-एक सीट पर जितना मुश्किल होगा। बशर्ते पिछड़े समाज के लोगों में ये संदेश पहुंच जाए कि उनके हक अधिकारों पर BJP सरकार ने चुप्पी साध ली है। ओबीसी समाज का वोट लेकर अब यही सरकार ओबीसी के खिलाफ तमाम काम कर रही है।
कहीं ओबीसी के आरक्षण में घोटाला कर रही है, कहीं ओबीसी को 27% भी आरक्षण नहीं दे रही है। कहीं ओबीसी समाज के लोगों का राजनीतिक उत्पीड़न कर रही है तो कहीं सीएम बनाने का ख्वाब दिखाकर स्टूल पर बिठा दे रही है।
भले ही संविधान का ये संशोधन राज्यों को ओबीसी लिस्ट बनाने की स्वतंत्रता मात्र देता है, मगर इसके बहाने ओबीसी को दिए जाने वाले अधिकारों की बहस अब तेज़ होने वाली है अगर जगज़ाहिर हो गया कि भाजपा भी पिछड़ा विरोधी ही है, तो उसे आगामी चुनावों में बड़ी परेशानी होने वाली है।
क्योंकि आधी से ज्यादा आबादी है जिसकी, उस ओबीसी के आंदोलन में अब आंधी आने वाली है। संसद के अंदर गूंजते हुए लोहिया और कांशीराम के नारों के बीच, अब कोई नई कहानी बनने वाली है।