बिहार की तर्ज पर अब पूरे देश में होगा SIR, चुनाव आयोग का बड़ा फैसला
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इसी बीच चुनाव आयोग ने पूरे देश में SIR कराने का फैसला किया है। संसद में दो दिनों से SIR पर विपक्ष हंगामा कर रहा है। ऐसे में आयोग का यह फैसला बेहद चौकाने वाला है। आयोग ने कहा कि देश के बाकी हिस्सों में SIR के लिए कार्यक्रम यथासमय जारी किया जाएगा।
चुनाव आयोग ने बताया कि मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत चुनावी मशीनरी, पात्रता की शर्तें, वोटर लिस्ट बनाने का तरीका और प्रक्रिया बताई गई है। संविधान का अनुच्छेद 324 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (‘आरपीए 1950’) संसद और राज्य विधानमंडलों के चुनावों के लिए वोटर लिस्ट तैयार करने और उनके संचालन का सुपरवीजन, निर्देशन और नियंत्रण निर्वाचन आयोग को सौंपता है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21 के तहत आयोग को मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का निर्देश देने का अधिकार है। इसमें आयोग नए सिरे से मतदाता सूची तैयार कर सकता है।
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आयोग ने बताया कि पहले साल 1952-56, 1957, 1961, 1965, 1966, 1983-84, 1987-89, 1992, 1993, 1995, 2002, 2003 और 2004 जैसे सालों में देश के सभी या कुछ भागों के लिए मतदाता सूचियों का गहन पुनरीक्षण किया था। ताकि मतदाता सूचियों को नए सिरे से तैयार किया जा सके। बिहार में अंतिम गहन पुनरीक्षण साल 2003 में हुआ था।
आयोग ने पूरे देश में वोटर लिस्ट के रिवीजन के पीछे की वजह बताई है। आयोग का कहना है कि पिछले 20 सालों में मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर नाम जोड़ने और हटाने के कारण कई बदलाव हुए हैं। तेजी से शहरीकरण हुआ है। शिक्षा, आजीविका और अन्य कारणों से लोग बड़ी संख्या में एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले गए हैं। बताया कि कुछ मतदाता एक स्थान पर पंजीकरण कराते हैं और फिर अपना निवास स्थान बदलकर, अपने मूल निवास स्थान की मतदाता सूची से अपना नाम कटवाए बिना, किसी अन्य स्थान पर अपना पंजीकरण करा लेते हैं। इससे मतदाता सूची में बार-बार उनका नाम आने की संभावना बढ़ जाती है।
चुनाव आयोग ने बताया कि बिहार में साल 2003 में वोटर लिस्ट का रिवीजन किया गया था। इसलिए 1 जनवरी 2003 की वैधता वाला वोटर सूची मान्य होगी। इस सूची में जिसका नाम होगा, उसे वर्तमान में चल रही वोटर लिस्ट रिवीजन से फर्क नहीं पड़ेगा।